अलंकार : अलम् अर्थात् भूषण। जो भूषित करे वह अलंकार है।अलंकार,
कविता-कामिनी के सौन्दर्य को बढ़ाने वाले तत्व होते हैं।
जिस प्रकार आभूषण से नारी का लावण्य बढ़ जाता है, उसी प्रकार अलंकार
से कविता की शोभा बढ़ जाती है। कहा गया है - 'अलंकरोति इति अलंकार
(जो अलंकृत करता है, वही अलंकार है। भारतीय साहित्य में अनुप्रास,उपमा,
रूपक,अनन्वय, यमक, श्लेष,उत्प्रेक्षा, संदेह, अतिशयोक्ति, वक्रोक्ति
आदि प्रमुख अलंकार हैं।
उपमा अलंकार
काव्य में जब किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना दूसरे समान गुण वाले व्यक्ति या वस्तु से की जाती है तब उपमा अलंकार होता है। उदाहरण -
- सीता के पैर कमल समान हैं
अतिशयोक्ति अलंकार
अतिशयोक्ति = अतिशय + उक्ति = बढा-चढाकर कहना। जब किसी बात को बढ़ा चढ़ा कर बताया जाये, तब अतिशयोक्ति अलंकार होता है। उदाहरण -- हनुमान की पूँछ में, लग न पायी आग।
- लंका सारी जल गई, गए निशाचर भाग।।
- आगे नदिया खरी अपार, घोरा कैसे उतरे पार
- राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार।।[1]
रूपक अलंकार
जहां उपमेय में उपमान का आरोप किया जाए वहाँ रूपक अलंकार होता है अथवा जहां गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय में ही उपमान का अभेद आरोप कर दिया जाता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है। रूपक अलंकार में गुण की अत्यंत समानता दिखाने के लिए उपमेय और उपमान को "अभिन्न" अर्थात "एक" कर दिया जाता है। अर्थात उपमान को उपमेय पर आरोपित कर दिया जाता है।उदाहरण:—
- पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
- ('राम' नाम में 'रतन धन' का आरोप होने से रूपक अलंकार है।)
- आये महंत बसंत।
- (महंत की 'सवारी' में 'बसंत' के आगमन का आरोप होने से रूपक अलंकार है।)
- जलता है ये जीवन पतंग
- यहां 'जीवन' उपमेय है और 'पतंग' उपमान किन्तु रूपक अलंकार के कारण जीवन (उपमेय) पर पतंग (उपमान) का आरोप कर दिया गया है।
विभावना अलंकार
जहाँ कारण के न होते हुए भी कार्य का होना पाया जाता है, वहाँ विभावना अलंकार होता है। उदाहरण -- बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।
- कर बिनु कर्म करै विधि नाना।
- आनन रहित सकल रस भोगी।
- बिनु वाणी वक्ता बड़ जोगी।
१. अनुप्रास
एक या अनेक वर्णो की पास पास तथा क्रमानुसार आवृत्ति को अनुप्रास अलंकार कहते हैं ।जहाँ एक शब्द या वर्ण बार बार आता है वहा अनुप्रास अलंकार होता है।जैसे;-
1) चारु-चंद्र की चंचल किरणे इसमे च वर्ण बार बार आया है
2) तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाय
3) रघुपति राघव राजा राम
२. यमक अलंकार
एक ही शब्द, जब दो या दो से अनेकनबार । अर्थ और ही और हो,तो वहाँ पर यमक अलंकार होता है ।उदाहरण :-
1) तो पर बारों उरबसी,सुन राधिके सुजान।
तू मोहन के उरबसी, छबै उरबसी समान। 2) कनक कनक ते सौ गुनी,मादकता अधिकाये।
या खाये बौराये जग, बा खाये बौराये। 3) काली घटा का घमंड घटा
३. श्लेष अलंकार[2]
यह अलंकार शब्द अर्थ दोनो में प्रयुक्त होता हैं। श्लेष अलंकार में एक शब्द के दो अर्थ निकलते हैं।जैसे रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून।पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।।
यहाँ पानी का प्रयोग तीन बार किया गया है, किन्तु दूसरी पंक्ति में प्रयुक्त पानी शब्द के तीन अर्थ हैं - मोती के सन्दर्भ में पानी का अर्थ चमक या कान्ति मनुष्य के सन्दर्भ में पानी का अर्थ इज्जत (सम्मान) चूने के सन्दर्भ में पानी का अर्थ साधारण पानी(जल) है।
==वक्रोक्ति अलंकार== इसका अर्थ टेडा कथन । प्रत्यक्ष अर्थ के अतिरिक्त भिन्न अर्थ समझ लेना वक्रोक्ति अलंकार कहलाता है।
या किसी एक बात केे अनेक अर्थ होने केे कारण सुनने वाले द्वारा अलग अर्थ ले लिया जाए वहा वक्रोक्ति अलन्कार होता हैं उदाहरण - श्री कृष्णा जब राधे जी से मिलने आते हे तो राधा जी कहती कौन तुम तो क्रष्णा कहते हैं मै घनश्याम तो राधा जी कहती हैं जाए कही और बरशो ।
५. प्रतीप अलंकार
'प्रतीप' का अर्थ होता है- 'उल्टा' या 'विपरीत'। यह उपमा अलंकार के विपरीत होता है। क्योंकि इस अलंकार में उपमान को लज्जित, पराजित या हीन दिखाकर उपमेय की श्रेष्टता बताई जाती है।उदाहरण- सिय मुख समता किमि करै चन्द वापुरो रंक।
= ६. उत्प्रेक्षा अलंकार
जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना हो।मानो झूम रहे हैं तरू भी मन्द पवन के झौंको से
७. व्यतिरेक अलंकार
८. दृष्टांत अलंकार
जहाँ उपमेय और उपमान तथा उनके साधारण धर्मों में बिंब प्रतिबिंब भाव होता है वहाँ दृष्टांत अलंकार की रचना होती है। यह एक अर्थालंकार है। जैसे-सुख-दुःख के मधुर मिलन से
यह जीवन हो परीपुरण
पिर घन में ओझल हो शशी
फिर शशी से ओझल हो घन।
यहाँ सुख-दुःख तथा शशी-घन में बिंब प्रतिबिंब का भाव है इसलिए यहाँ दृष्टांत अलंकार है।
र
जिस स्थान पर दो सामान्य या दोनों विशेष वाक्य में बिम्ब- प्रतिबिम्ब भाव होता है, उस स्थान पर दृष्टान्त अलंकार होता है। इस अलंकार में उपमेय रूप में कहीं गई बात से मिलती-जुलती बात उपमान रूप में दूसरे वाक्य में होती है। उदाहरणएक म्यान में दो तलवारें,
कभी नहीं रह सकती है।
किसी और पर प्रेम नारियाँ,
पति का क्या सह सकती है।kabeer ki teena
इस अलंकार में एक म्यान दो तल
वारों का रहना वैसे ही असंभव है जैसा कि एक पति का दो नारियों पर अनुरक्त रहनायहाँ बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव दृष्टिगत हो रहा है।
== ९. भ्रांतिमान अलंकार ==जहाँ कन्फ्यूजन रहे वहां पर भ्रांतिमान अलंकार होता है
really very nice post thank you for shring this post
ReplyDeletehindustani bhau
vikas pathak
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